यह सवाल हर व्यक्ति के मन में आएगा जो मेरे ब्लॉग पर आएंगे। यह लाजिमी है, क्योकि ना तो मैं अभिनेता हुँ और ना ही नेता वाला अभिनेता हुँ, जिसका हर आये दिन मीडिया जगत में लोग नाम लेते हैं। फिर मैं कौन हूँ, यह बताना बेकार है, फिर भी कोशिश करुंगा व्यक्त करने की ।
मैं सबसे पहले एक बालक था जिसकी आकांक्षाओं की उड़ान असीमित थी। आज के बच्चों की तरह पूछे जाने पर की बड़ा होकर क्या बनोगे मैं ये नहीं कहता था कि पायलट बनूँगा, या वैज्ञानिक बनूँगा। इस तरह की बातें प्राइवेट स्कूल के बच्चे करते हैं। हम रंग बिरंगे कपडे पहनने वाले सासकीय विद्यालय के बच्चे ‘राम रहीम’, ‘गिलहरी और भाई’, ‘कबूतर और जाल’ पढ़कर ही खुश रहते थे। हमारा लक्ष्य सिर्फ अपने गृहकार्य को पूरा करना होता था और कक्षा में कविताये याद करनी होती थी जो मास्टरजी दिया करते थे।
उच्च विद्यालय तक आते आते मुझे विभिन्ग लोगो का उदहारण दिया जाने लगा, जैसी की चाचा जी की तरह अभियंता बनो, फूफा जी की तरह डाक्टर बनो इत्यादि। यहाँ भी मेरा लक्ष्य कुछ खास था नहीं था सिवाय कक्षा १० में प्रथम श्रेणी लाने के जो की संभव नहीं हो पाया और फलस्वरूप घरवालों को नाराज़ करने का लक्ष्य मैंने जरुर पा लिया।
उसके बाद कुछ बड़ो की दया और कुछ अपनी जिज्ञासा से गणित और विज्ञान लेकर पढ़ने का विचार किया मैंने । सच कहूँ तो उस वक़्त भी मुझे नहीं पता था कि मैं आगे इस विषय को पढ़कर क्या करुँगा। लेकिन सबने कहा इसलिए इसे भी आजमाने में क्या बुराई है सोचकर आगे बढ़ गया।कुछ मेरी मेहनत और कुछ मेरा नसीब कहिये कि १२वीं में मैं न केवल प्रथम आया बल्कि विद्यालय में अपना नाम मेधावी क्षात्रो में ले आया। ऐसा लगा कोई बड़ी गलती कर दी। जहाँ कल तक सब मुझे बैंक या रेलवे में कर्मचारी के लिए तैयारी करवाना चाहते थे,अब मुझमें देश का अगला वैज्ञानिक देखने लगे।
खैर,, अभियांत्रिकी मुझे एक ऐसा क्षेत्र लगा जहाँ शायद मैं कुछ कर सकता था। हालाँकि इसके बारे में भी लोगो की दोहरी राय थी लेकिन यक़ीनन यह मेरे लिए मेरा भविष्य बनाने वाला फैसला था । स्वर्ण पदक, प्रथम श्रेणी सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लकिन यह सब पाने में मैं सफल रहा और महाविद्यालय से ही चयनित होकर एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में आज उच्च पद पर हुँ ।
तो मैं मेरे मेहनत से, भाग्य से, दुर्भाग्य से, किस्मत से, जैसे भी कहिये दुनिया की भीड़ में आज एक गुमनाम अभियंता हुँ और कभी कभार खाली वक़्त का मारा लेखक हुँ।
बहुत बढ़ियाँ लिखने लगे हो …
लिखते रहो
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Thank you Bhai 😊
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Achha laga sabhyata ke sath sach likhne ke liye….yakin aur garv karne ko majboor kiya tumne ….khushi mahsoosh karta hoon…tujhe mera kanak kahne me….keep it up…
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Thank You Bhaiya.. Aise hi Kabhi Kabhi mann Hota hai to likh deta hu Kuch 😊
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Bahut badhiyan
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Well done Kanak! Tumhari kavita se lagta hai munshi premchand ke I SSE yad aate hai! Keep it up dear Kank!!
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खुद के बारे में बहुत बेहतरीन विश्लेषण किया, अच्छे लेखक की यह निशानी हैं 🙂
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बहुत धन्यवाद। मैं बस अपना प्रयास दे रहा हूँ 😊
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This story ” who am I ” is a brilliant narration of our societal values. First, the pressure of why are you not like so and so ! Second, pressure to study and do what others want you to do. My advice to all young Indians is one, find your own talent – what comes naturally to you. Second , develop your skills around that talent and third , drive it per your own values and samskaar. This approach brings happiness and eliminates frustration and the modern indentured servitude.
The youth of India must reorient it’s thinking – study what you enjoy most. Pursue a career that the you love to do.
Thank you
Vibhuti Jha
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I completely agree with you ma’am. 🙂
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पहले तो ऐसा लगा आप हमारी आवाज हो लेकिन आप तो कुछ और ही हो
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