राहत इंदौरी साहेब को समर्पित कुछ पंक्तियाँ

वो खिलाफ़ भी होते हैं बशर्ते क़ौम लिखा हो
सिवा इसके कोई और जान, जान थोड़ी है

लगेगी आग कहीं तो बुझाना है सबको मिल जुलकर
क्या तेरा क्या मेरा घरों में रहता कोई हैवान थोड़ी है

यहाँ घर में ही बन बैठे हमारे कई दुश्मन
लेकिन हिंद के सैनिक देखते ईमान थोड़ी हैं

किसी के मुँह से निकली बात पर दंगे क्यों करना
लाओ दायरे में कानून के कानून बेअसर-बेजान थोड़ी है

दशकों किए रखा था किराए के मकान पर कब्जा
बेदख़ल होने से अब उस खेमे में बौखलाहट कम थोड़ी है

सरकारें आएँगी जाएँगी देश चलते रहना चाहिए कहने वाला
किराएदार था और है ये वो जानते हैं जाति मकान थोड़ी है

बाप दादा ने सींचा है अपने खून से हिन्दुस्तान की मिट्टी को
है हिन्दुस्तान हमारे बाप का, पड़ोसी के बाप का थोड़ी है

@01karn

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